धाकड़ जाति की उत्पत्ति के संबंध में परिपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी एवं साक्ष्यक उपलब्ध नहीं है। कुछ विचारों एवं लेखकों का मत है कि ‘धाकड़’ ठाकुर जाति की उपजाति है या क्षत्रिय वंशजों में से बने हुए एक समूह का नाम है। राजपुताना प्रांत बनने से पूर्व ‘धरकड़ ठाकुर’ एवं ‘’राजपूत ठाकुर’’ के समूह थे, बाद में ये दोनों समूह पृथक-पृथक जातियों में विभाजित हो गये।
महराजा बीसलदेव द्वारा संवत् 1140 के लगभग (महमूद गजनवी के अजमेर आक्रमण के बाद) समस्तज धौर, धवल, सामंती राजाओं आदि की आमसभा आयोजित की थी, जिसमें कृषक क्षत्रिय अधिक संख्या में उपस्थित थे, उस समय इस समूह का नाम बीसलदेव (विग्रह राज) द्वारा धरकर या धरकड़ रखा गया था आगे चलकर धरकड़ का अपभ्रंश धाकर-धाकड़ हो गया। श्री केसरी सिंह राठौर (धाकड़) बयाना (राज.) द्वारा सन्धि विच्छेद इस प्रकार किया गया है –
धरकर – धरकट – धरकड़ – धाकर – धाकड़
धर – धरती, भूमि
कट – काटना, जोतना अर्थात भूमि स्वाकमी (कृषक) भूमि को जोतने वाला।
‘’धाकड़’’ – रौब, अड़-अड़ना, हटी।
शाब्दिक अर्थानुसार रौब, हठ एवं गर्व के साथ रहने वाला वयक्ति धाकड़ कहलाता है।
अजयराज चौहान ने अजय मेरु (अजमेर) नगर की नींव डाली थी राजा बिसलदेव इन्ही के वंशज थे। पृथ्वीराज चौहान तृतीय (सम्वत् 1225 से 1248) की राज्य सभा में 30 धवल सामंत धरकड़ समूह के थे।
उपरोक्त तथ्यों के साथ ही धाकड़ जाति की उत्पत्ति के संबंध में राव (भाट) की पोथियों में भी विस्तृंत वर्णन है। सोलिया (मालव) धाकड़ के राव श्री दुर्गाशंकर बिहारीलाल मुकाम बांगरोद जिला रतलाम से हस्तलिखित (पाण्डूेलिपी) पोथी के आधार पर जो जानकारी प्राप्त हुई है, इस प्रकार है-
अजमेर में राजा बिसलदेव चौहान का राज्य था, उस समय उस क्षेत्र में ब्राह्माणों का वर्चस्वर था तथा वे राजा से रूष्ठ थे। महाराजा ने ब्राह्मणों को मनाने के लिये विक्रम संवत 797 में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। अजमेर में आयोजित इस महायज्ञ में 84 न्यात के लगभग 10 लाख 56 हजार ब्राह्मण सम्मिलित हुए। यज्ञ कार्य सम्पन्नल होने पर दक्षिणा में ब्राह्मणों द्वारा राज्य की मांग की गई तथा राज्य न सौंपने पर श्रापित करने का कहा गया। राजा को असमंजस में देखकर मंत्री व सहायकों ने कुटिल चाल चली और समस्त ब्राह्मणों से निवेदन किया कि आप पहले सपरिवार भोजन कर लें फिर आपकी इच्छा पूर्ण की जावेगी। भोजन करते समय आकाशवाणी से ज्ञात हुआ कि भोजन में मांस मिला हुआ है। ब्राह्मणों के साथ धोखा हुआ है वो अपवित्र तथा तपक्षीण हो गये है। तत्क्षण आवेश में आकर लाखो ब्राह्मणों ने आत्म हत्या कर ली तथा धैर्यशील (बचे हुए) ब्राह्मण मिलकर श्री धरणीधंर ब्राह्मण देवता (ऋषि) के पास विचार-विमर्श करने पहूंचे। श्री धरणींधर जी ने कहा कि आप धर्म से विचलित हुए हो, सब एक साथ मिलकर (समूह में) राहो, धोखे के फलस्वरूप आज से आपकी जाति ‘धाकड़’ कहलायेगी। उस समय ब्राह्मणों ने अजमेर छोड़ने की प्रतिज्ञा की तथा आसपास के क्षेत्रों में बसने के लिये चले गये।
शाखा विवरण – श्री राव के अनुसार धाकड़ की कुल सात शाखाएं है-
1. सौलिया धाकड़ 109 गौत्र
2. नागर धाकड़ 164 गौत्र
3. विसया धाकड़ 120 गौत्र
4. धाकड़ा 162 गौत्र
5. नागर चारिया (चार) 143 गौत्र
6. पल्लीवाल ननवाणा 187 गौत्र
7. बनिया धाकड़ 114 गौत्र
योग 999 गौत्र
उपरोक्त शाखाओं में से 2 शाखा ने अपनी पृथक पहचान स्थापित कर ली –
1. पल्लीवाल ननवाण – ब्राह्मण जाति से जुड़ गये और ‘ब्राह्मण पल्लीवाल ननवाणां’ कहलाये।
2. बनिया धाकड़ – इन्होंने जाति को उपनाम (गौत्र) के रूप में अपनाया और बनिया (वैश्य) समाज से जुड़ गये।
गौत्र का नामकरण – जिस नाम या विशेषण से किसी वंश या समूह का परिचय प्राप्त होता है वह शब्द ‘गौत्र’ कहलाता है। गौत्र – रचना, पितृ पुरूष, कुलगुरू, ऋषि, व्यवसाय-विशेष, सामाजिक स्थिति, आर्थिक सम्पन्नता एवं स्थान विशेष में निवास आदि से होती है। सौलिया धाकड़ में गौत्र एवं शाखा नामकरण ऋषि अनुसार हुआ है यथा- श्री सोमेश्वर ऋषि के साथ जिन ब्राह्मणों ने भोजन किया वे ‘सौलिया’ हुए। श्री नरदेव ऋषि से ‘नागर’, श्री धरणींधर ऋषि से ‘कीरार’ तथा श्री वेशीश्वर ऋषि के साथ पल्ली में आटा लेने वाले ‘पल्लीवाल’ कहलाये। कुलदेवी – माँ अन्नपूर्णा को कुलदेवी माना गया है।
‘सोलिया’ का सविस्तार विवरण देने के पूर्व ‘नागर चार (चारिया) की पोथी जो प्राचीन डिंगर लिपि में लिपिबद्ध है, के तथ्यों का उल्लेख करना चाहूंगा।
नागर चार की पोथी का विवरण – चौहानों की 24 शाखाओं में से एक शाखा दाईमा चौहान ने राजा धरणीधर हुए उन्होने शस्त्र छोड़कर (राज कार्य छोड़कर) कृषि कार्य प्रारम्भ किया।
श्री धरणीधर से ही धाकड़ समाज की नामकरण हुआ।