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NUS की टीम द्वारा विकसित इस सिस्टम में मानव शरीर पर लगे प्रत्येक रिसीवर और ट्रांसमीटर में एक चिप होता है, जिसे पूरे शरीर पर कवरेज बढ़ाने के लिए स्प्रिंगबोर्ड के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके बाद, यूज़र को ट्रांसमीटर को किसी भी एक पावर सोर्स पर रखने की जरूरत होती है, जैसे कि उदाहरण के लिए उन व्यक्ति की कलाई पर मौजूद एक स्मार्टवॉच, और सिस्टम उस सोर्स से निकली ऊर्जा का उपयोग कर शरीर पर लगे पावर ट्रांसमिशन के जरिए अन्य कई वीयरेबल्स को चार्ज कर सकता है। यूज़र को केवल एक डिवाइस को चार्ज करने की आवश्यकता होगी, जो उसके द्वारा पहने गए बाकी गैजेट्स को उसी सोर्स से एक साथ पावर देगा।
मानव शरीर का वायरलेस चार्जिंग सिस्टम के बीच आने से जो अवरोधक पैदा होता है, उसे बॉडी शैडोइंग कहते हैं। रिसर्चर्स ने नेचर इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रकाशित एक स्टडी में कहा आज के समय में उपलब्ध तरीके मानव शरीर पर पहने हुए गैजेट्स को चार्ज करने के लिए स्थायी पावर देने में असमर्थ हैं। उन्होंने आगे कहा बाधा (मानव शरीर) के आसपास चार्ज भेजने की कोशिश करने के बजाय, उन्होंने इसका इस्तेमाल उर्जा को बनाने और संचारित करने के लिए किया है।
रिसर्चर्स ने पर्यावरण से ऊर्जा प्राप्त करने के तरीकों पर भी गौर किया। लोग ज्यादातर समय अपने कार्यालय या घर के वातावरण में विद्युत चुम्बकीय तरंगों (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव) के संपर्क में आते हैं, उदाहरण चालू लैपटॉप या इसी प्रकार के अन्य डिवाइस। रिसर्चर्स की टीम की यह विधि शरीर को इस ऊर्जा को लेकर हाथ में (या शरीर के किसी अन्य अंग में) पहने वियरेबल्स को उर्जा पहुंचाने की अनुमति देती है। इसका मतलब यह हो सकता है कि आप किसी भी स्मार्टवॉच को पहनकर चार्ज कर सकते हैं।
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